Menu
blogid : 13285 postid : 764272

मन का मनन -५

Abhivyakti
Abhivyakti
  • 154 Posts
  • 32 Comments

आज पढ़ा मैंने सच जिंदगी का,
लिखा था जो ज़िन्दगी मिली हमे,
तरसते हैं लोग इसके लिये,
ज़रा नीचे झुक के देख
अपनी मन की आँखों से,
कैसे कैसे गरीब हैं तेरे आस पास,
एक तो वो, जो पैसे से गरीब हैं,
और एक वो, जो नीयत से गरीब हैं,
जो पैसे से गरीब हैं देखते ऊपर की तरफ
जैसे किसी रईस के ऊँचे कद के सामने
एक बौना सा आदमी देखता इस आस से
कि शायद नज़र पड़ जाये इसकी और
मैं भी बड़ा बनने के ख्वाबो को हकीकत बना सकूं
लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल जुदा हैं,
कहता जो रईस खुद को वो
और ऊपर की तरफ देखता, उड़ने की सोचता
जमीन पर पैर नही पड़ते उसके,
उसके सपनों की दुनिया इतनी बड़ी हैं
कि नीचे देखने की नज़र खो गयी हैं उसकी
जो नीचे खड़े हैं, जो बौने थे और ज्यादा बौने हो गये
और रईस के सपने और ज्यादा बड़े
सोचते सोचते एक सवाल मेरे अंदर से आया
क्या रईस, रईस बन सका
क्या पैसे से रईस नीयत से रईस हैं, शायद नही,
नीयत तो पहले से भी ज्यादा कंजूस हो गयी,
अभी कुछ साल पहले तक ठीक थी, अभी खो गयी
आओ देखे उस छोटे आम आदमी का क्या हाल हैं
अरे ये तो वही का वही हैं, सच कहूँ तो ये सही नही हैं
क्योंकि बरसों बीत गये उसी स्टैंड से चार्टड बस लेते
वही पुराना बैग हाथ में जो बरसों पहले था, आज भी हैं
नपी नपायी पटरियों पर दौड़ती हैं इसकी जिंदगी की रेल
ये ही हैं इस दुनिया का खेल
पर एक बात तो बताओ मुझे
सवाल आया अंदर से, ये आवाज़ कुछ नई सी थी
मन की नही, आत्मा की थी,
सवाल अलग था
बोला क्या नकली जिंदगी जीते हो
असली जिंदगी का सच बताऊं
क्या रखा हैं इस सुख और दुःख में
दुःख और सुख दोनों ही परीक्षा हैं
तेरे भीतर हैं कस्तूरी और तू इसे खोजता है बाहर
सच यह हैं कि, कस्तूरी भीतर हैं और
तेरी नज़र जिंदगी जीने की बाहर की
बना नजर जिंदगी जीने की,
बन जा उस प्यारे का प्यारा
बन जा विराट, क्या फंसा हैं क्षुद्र में
इस जमाने में कोई गरीब नही,
गरीब वो हैं जिसको याद न आये प्यारे की
न सुन इस मन की, इस आत्मा की सुन,
इसे गुन और चुन, दूर नही हैं मंजिल
देख जरा ठीक से सामने ही तो खड़ा हैं
तेरा खुदा बन के तेरी ज़िन्दगी |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply