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भावसागर(3)

Abhivyakti
Abhivyakti
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अरे ओ कान्हा जैसा भी हूँ, हूँ तो तेरा ही, ये तो तेरी कृपा ही है जो आज मेरे अन्दर ये जागरण आया, तूने चेताया मुझे हर पल, हर क्षण ताकि रह पाऊ मैं इस लायक कि जी पाऊ प्रभुता में तेरी पात्रता के अनुरूप| जो कांटे है मेरी राह में, तूने निकाले चुन चुन के जहाँ मै चला, मेरे साथ चला तू, हर पल, हर क्षण, बनायी ये औकात मेरी कि मिला सकूँ ये नजर तुझसे बगैर नजरे झुकाये | ये औकात भी तेरी ही दी हुई है वरना मेरी क्या बिसात| सुना है अपने बडो से, कोई दिल से पुकारे तो दौड़ा चला आता है तू तो बता जरा, ओ कान्हा, काहे देर लगायी तूने ? क्यो न आया तू मेरी पुकार पर| हाँ शायद मेरी पुकार में ही कोई कमी थी अन्यथा तू जरुर आता | अब ये जिम्मा भी तेरा ही है कि आवाज भी तू लगवाये खुद को और आये भी खुद क्योकि मै तो कठपुतली हूँ तेरी, जिसकी डोर तेरे हाथ है| हाँ ये जरुर है कि ये कठपुतली निरी निष्प्राण नही, थोड़ी सी चेतन है पर वो भी तेरी चेतना से अपना कुछ भी नही, तू तो प्रकाश कुंज है, तेरे प्रकाश से प्रकाशित है हम सब |
क्रमशः

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