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भावसागर(2)

Abhivyakti
Abhivyakti
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कैसी है ये प्रीत तेरी औ मेरे कान्हा, जो चुभती है हर क्षण एक कसक की तरह मेरे ह्र्दय में क्योकि ये प्रीत अभी कसी है कसौटी पर विरह की और कान्हा मेरे सही पूछे तो ये विरह भी तेरी कृपा से है, जो बनाता है मुझे इस लायक कि याद रहे तू मुझे सदा | क्या ये तेरी कृपा नही कि ये विरह की ओट में तू बनाता इस काबिल मुझे कि आऊ में बनकर प्यारा तेरा तेरे पास| क्या ये तेरी परम कृपा नही मुझ पर कि तेरी प्रीत की कसक भी झलका दी तूने मुझ पर| देख मेरी याद करते करते विरह झलक गया तेरा भी| अब जान गया मै कि ये मामला एक तरफा नही है| तू कितना भी छुपाये पर क्या ये छुप पाया? नही, तू कैसे छुपायेगा ? तू तो देने वाला है, उड़ेलने वाला है, करुणा की मूर्ति है | कैसे ओट में रखेगा तू ? कैसे पर्दा डालेगा तू अपने इस स्वभाव पर ? बात नही बस की तेरी ये, नही तेरे बस में ये, तेरे क्या, हम दोनो के ही, क्यों कि तेरे बिना मै नही और जब मैं दीन ही न हूँगा तो कैसे कहलायेगा तू दीनो का सरताज? कैसे कहलायेगा कृपानिधान ? कैसे सजायेगा कान्हा तू अपना दरबार? ये सच है, जो जानता है जग कि ये दीन ही शान है तेरे दरबार के |
क्रमशः

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