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चेत सके तो चेत-2

Abhivyakti
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जो ये स्त्री की निन्दा करने वाले लोग है, उसका कुल मतलब इतना है कि जिसने बोध करा दिया पुरुष को, उसके नकलीपन का आइना दिखा दिया, वही दो पक्ष हो गये और उसे जीतने की प्रबल इच्छा ने जन्म लिया| सबने सुनी है कहानी तुलसीदास की| कैसे बने तुलसीदास? एक बार   तुलसीदास की पत्नी मायके गयी थी चार दिन के लिए, पीछे पीछे पहुंच गये वे | नदी उफान पर थी, इतने अन्धे थे काम की प्रबलता में कि लाश पर बैठ कर नदी पार की| पहुंचे तो घर का दरवाजा बन्द था | पिछले दरवाजे से गये, झज्जे पर सांप लटक रहा था, उसे रस्सी समझ कर चढ़ गये पत्नी के पास | पत्नी चौंकी, आप यहाँ कैसे? फिर पत्नी बोली, जिस हाड मांस के शरीर के लिए तुम्हारा ये हाल है, इतना प्रेम यदि प्रभु से किया होता तो जीवन सफल हो गया होता| तुलसीदास के अंहकार को चोट लगी और ये बोध, जो दिया उनकी पत्नी ने गुरु बनकर लेकिन उसका धन्यवाद भी नही किया उन्होंने, गुरु नही माना और लिखा, ‘ढोल, गंवार, शुद्र, पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी’ | ऐसा क्यो? इसने तो बोध देकर सही राह दिखायी लेकिन जिन्होने भी बोध दिया इस संसार को, वे ही आँखों की किरकरी बने और मंसूर, अलहिल्लाज, जीसस सुकरात जैसे तो मौत की नींद सुला दिया गये क्योकि बोध देने वाला कडवा सच बोलता है, जो समाज के इन अन्धो को बर्दाशत नही क्योकि झूठ की परत इतनी प्रगाढ़ है कि आज वही सच लगता है | कहते है स्त्री त्रिया चरित्र है| क्या कभी किसी स्त्री के ऊपर पुरुष सती हुआ है आज तक? नही, बिल्कुल नही, जबकि स्त्री सरल है| पता नही कितनी भोली भाली मासूम झोंक दी गयी आग में इस पुरुष को बड़ा दिखाने के चक्कर में| जब स्त्री को चिता में बिठाया जाता तो जोर जोर से वेद मन्त्रो का उच्चारण किया जाता, ढोल मंजीरे बजाये जाते, जिससे जलती स्त्री की चीख पुकार दब जाये आवाज के तले | उस चिता पर बहुत सारा घी डाला जाता जिससे धुंआ  हो और जलती स्त्री नजर न आये, वह स्त्री उठ कर भाग न सके, इसके लिए ब्राहमण का समूह घेर कर खड़ा रहता चिता को, मशाले लिये हुए| यदि वह भागने का प्रयत्न भी करे तो मशाले मार कर दुबारा उसे डाल देते चिता में | ये है पुरुष का चरित्र जो स्त्री को त्रिया चरित्र कहते है | बचपन से लेकर बूढ़े होने तक, पहले पिता बेटी की रक्षा करता है, भाई रक्षा करता है, विवाह के बाद पति रक्षा करता है तो खतरा किससे किसको है? स्त्री को स्त्री से नही है अपितु पुरुष से है | क्या आज तक किसी स्त्री ने पुरुष वेश्या को बनाया है?  नही| सदा पुरुषो ने ही स्त्रियों को इस नरक में झोंका है और तो और देवता भी पीछे नही है | उन्होंने भी देवदासियां बनायी| आज तक हर किसी ने चाहे वह मनुष्य हो या देवता, सबने स्त्री को अपनी व्यवस्था के अनुरूप इस्तेमाल किया है | हाँ, नाम अलग अलग है | इन स्त्रियों ने तो आज तक सिर्फ समर्पण ही किया है, कुछ माँगा नही | कोई स्त्री नही कहती, मुझे पुरुष का चरित्र समझना है पर पुरुष को स्त्री का चरित्र समझना है क्योकि पुरुष जान गया है कि स्त्री सरल है | इस पर दबंगई दबदबा चला सकता है| इसी का फायदा उठता है स्त्री को समझ कर उसका मालिक होना चाहता है | हमेशा ढूढ़ता है उसके राज | पश्चिमी विचारक बेकिन कहता था, ज्ञान ही शक्ति है | जिस चीज को आपने जान लिया, आप उसके मालिक हो गये | अपने को जब यह ज्ञान आ गया कि बारिश कैसे होती है तो इन्द्र की पूजा चढ़ावा कौन और क्यों चढाये | जब बिजली कैसे बनती है और चलती है तब ही हम बिजली के मालिक हो गये अब किसी बिजली के चमकने से गिरने से डर नही|

गुरु जी सुनाते थे एक कहानी सेंट पीटर की, जो द्वारपाल थे स्वर्ग के| स्वर्ग के द्वार पर तीन ईसाई एक वक्त पर पहुंचे| यूँ तो बहुत से द्वार थे लेकिन ये ईसाई स्वर्ग रहा होगा| सेंट पीटर ने पहले से पूछा, तुम अभी कैसे आ गये, तुम्हारा तो जीवनकाल शेष था ? तब वह बोला, मै जब शाम ढले घर आया, देखा बेड के सिरहाने तकिये पर सिर के दो निशान थे| मैंने पूछा पत्नी से, ये दूसरा निशान कैसा? वो बोली, दूसरा कौन होगा, ये भी मेरे सिर का ही है लेकिन मेरा जासूसी दिमाग उसकी इस बात से संतुष्ट न हुआ| मैंने नीचे देखा, जूते उतरे हुए थे | अब तो मेरा दिमाग भन्ना गया | पूरा घर उलट पलट कर डाला मैंने, सामान तोडा, फेंका उधर इधर, खिड़की दरवाजे सब खोले, ढूंढा, पर कोई न मिला, तब मैंने घर के किचन में जाकर रेफ्रीजेरेटर को खिसकाया और सांतवी मंजिल से नीचे गिराया, फ्रिज भरा था, उसे खिसकाने से हो मुझे हार्ट अटैक आया और मै चल बसा| दूसरे से पूछा, आप बताओ| वो बोला, मैंने कुछ नही किया, रास्ते से गुजर रहा था, ये फ्रिज मेरे सिर पर गिरा और मेरा काम तमाम| संत पीटर तीसरे से मुखातिब हुए और बोले आप बताओ| वह बोला, मेरी इतनी सी गलती थी कि मै फ्रिज में जाकर बैठ गया, जिसको इस दुष्ट ने नीचे गिरा दिया | इस तरह से जासूसी करता है पुरुष लेकिन उत्सुकता जाती नही, आफिस में बैठे बैठे भी घर में अकेली पत्नी के बारे में खोज खबर रखता है और खोजता है राज, सोचता है, शक की नजर से देखता है |

जीये हम जागरण में हर पल हर क्षण और यात्रा करें पशुता से प्रभुता की ओर, जागरण के साथ| सबसे पहले मनुष्य अपने को जाने, अपने को पहचाने, जिसने जीता स्वयं को, उसने जीता जग को, सब पा लेगा वह जिसने स्वयं को पाया |

खुदा जाने कहाँ है असगरे दीवाना बरसो से

कि जिसको ढूढ़ते है काबा औ बुतखाना बरसो से

तडपना है, न जलना है, न जल कर खाक होना है

ये क्यूँ सोई हुई है फितरते परवाना बरसो से

कोई ऐसा नही या रब जो इस दर्द को समझे

नही मालूम क्यो खामोश है दीवाना बरसो से

कभी सोजे तसल्ली से उसे निसपत न थी गोया

पड़ी है इस तरह खा किस तरह परवाना बरसो से

हसीनो पर न रंग आया न फूलो पर बहार आयी

नही आया जो लब पर मस्ताना बरसो से

जिसे लेना हो आकर उस दर से जुनू ले ले

सुना है होश में है असगरे दीवाना बरसो से

भक्तो की, दीवानो की, मस्तो की दुनिया, पागलो की दुनिया है ये, जो चढाते है अपने आपको उसके उपर, अपने आप को पोछते है, देते है दान अपने सिर का, अपने अंह का, चढाते है शीश चरणो में| ये है मस्तो, दीवानो का जीवन| कहते है स्त्री को त्रिया चरित्र परन्तु एक देवता ने धोखा दिया अहिल्या को | पहले ऋषि को कहा, प्रात: स्नान के लिए जाओ, जब गये तो मौका पाकर पीछे से ऋषि का रूप बनाकर अहिल्या को ठगा, उसका सब ले लिया और बदले में दिया एक कंलकित जीवन और ये दोष तो, पाप तो देवता ने किया था, फिर अहिल्या को श्राप क्यो दिया ऋषि  ने क्योकि देवता से डरते थे, उनकी शक्ति से डरते थे| तब जोर उस अबला पर ही चला और ऋषि ने श्राप दिया, जा पत्थर हो जा| बात इतने पर भी नही रुकी| जिसके चरण लगने से उद्धार होना था वह श्री राम भी पुरुष ही थे| सीता जी क्यो नही क्योकि स्त्री को अधिकार नही| क्यो कहा राम ने सीता से लंका जीतने के पश्चात हे सीते, हम सूर्यवंशी अपनी प्रतिष्ठा के लिए युद्ध करते है, स्त्री के लिए नही| ये सीता जी, जिन्होंने बरसो इंतजार किया श्रीराम का लेकिन ये क्या कह गये श्रीराम | बात इतने पर ही नही रुकी, अग्नि परीक्षा भी सीता जी ही ने दी, राम जी ने क्यो नही? क्या राम जी अलग नही रहे सीता से, तो अग्नि परीक्षा दोनो को देनी चाहिए थी | उसके बाद भी एक धोबी के आरोप पर, जो लगाया उसने श्रीराम पर, कि क्यो रखा सीता को घर पर? श्रीराम ने गर्भवती सीता को घर से निकाल दिया | क्या यह ठीक किया मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम ने? और हाँ आग सबको एक समान ही जलाती है, वह भेदभाव नही करती| एक नौकरानी पर आरोप लगा घड़ी चुराने का, मालकिन मंदिर में ले गयी| बोली, अगर सच में चोरी नही की तो परीक्षा देनी होगी| भोली भाली लडकी कहती रही, मै सच कह रही हूँ, मैंने चोरी नही की और सोचा, जब चोरी की ही नही तो डर कैसा? सीता जी ने भी अग्नि परीक्षा दी थी | मेरा क्या बिगड़ेगा, ये सोचकर तैयार हो गयी, भीड़ जमा हो गयी, खौलते तेल मे हाथ डलवाया गया और हाथ झुलस गया | अग्नि का धर्म है जलाना, चाहे कोई हो| अंगारा रखे हाथ में तो जलायेगा ही | श्रीराम से पूछा लक्षमण ने भईया काट दू नाक और सूपर्णखा की नाक काट दी| क्या ये हिंसा नही? हाँ, ये हिंसा थी | क्या वे नही कह सकते थे सूपर्णखा से? ये होना सम्भव नही, विवाहित हूँ मै | ये भेद भाव हमेशा से होता आया है स्त्री से | आज भी है और अगर नही जागे हम तो शायद हमेशा रहेगा | चंदूलाल अपनी पत्नी से बोले, रात देर से आयी, कहाँ थी? बोली, मेरी सहेली कमला ने रोक लिया था| चंदूलाल बोले, सफेद झूठ, कमला के साथ तो मै था तू कहाँ थी? ये पुरुष समाज बात करता है त्रिया चरित्र की और रखता है उत्सुकता स्त्री की समझने की और जीता है खोखलेपन के साथ |

क्रमशः

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