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चेत सके तो चेत

Abhivyakti
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मुल्ला नसीरुदीन का लड़का फजलू छोटी उम्र से ही जिद्दी था| उसकी आदत थी जो कहो, उससे उलटा करने की | कई दिनों तक परेशान रहा मुल्ला| जो कहो, उल्टा करे उसे | एक दिन अचानक मुल्ला को एक युक्ति सूझी | वह फजलू से जो करवाना होता, उससे उल्टा कहता, अब तो समस्या सुलझ गई| उसे कहो सो जा तो वह उठ कर बैठ जाता, मिठाई खा ले तो नही खाता| मुल्ला खुश हुआ| कुछ साल तक सब ठीक चलता रहा| थोडा बड़ा हुआ फजलू | एक दिन मुल्ला और फजलू बाजार करके लौट रहे थे, नदी पार कर रहे थे | गधे पर बोरी लदी थी चीनी की| एक गधा मुल्ला के पास, एक फजलू के पास| अचानक मुल्ला ने देखा, फजलू के गधे के पीठ पर जो बोरी थी, वो दायी और झुक गयी है| वह चिल्लाया, फजलू अपनी बोरी को दायी तरफ झुका, नही तो नदी में गिर जायेगी | सोचा मुल्ला ने आदत पुरानी है, फजलू को ऐसा कहने से बायी तरफ झुकायेगा और बोरी बच जायेगी नदी में गिरने से लेकिन अब की बार फजलू ने वही किया जो कहा मुल्ला ने, दायी तरफ झुकायी और बोरी नदी के अन्दर गिर गयी पानी में| चिल्लाया मुल्ला, ये क्या किया? बोला फजलू, अब्बा अब मै तेरी बात पर नही, तेरी नीयत पर चलता हूँ| तू सोचता कुछ और है और कहता कुछ और |

यही हालत है आज हमारे संन्यासियों की, जो कहते है कि स्त्री के चरित्र का ठिकाना नही| यकीनन खोट है उनकी नीयत में | उन्हें भी चाहिए स्त्री, पर मिलती नही, इसलिए गाली देते है स्त्री को | ध्यान से देखे हम आज तो स्त्री ज्यादा विश्वास के योग्य है पुरुषो के मुकाबले | सही मायने में पुरुष वह है जो हमेशा जीता है जागरण में, जो जीये प्रकाश के साथ, अपनी सत्यता के साथ, एक ऐसे जागरण के साथ, जो सदा जगाये रखे उस परम को अपने भीतर| अगर हम धन को कमा नही पाते तो धन को गाली देते है| अगर आप को रास्ते में पैसे पड़े मिल जाये और आपका लोभ लार टपकाने लगे तो इसमें क्या दोष है धन का ? दोष तो आपका है, आपके लोभ का है| ठीक यही हाल स्त्री का है, कहते है स्त्री का चरित्र त्रिया चरित्र है लेकिन कभी भी कोई स्त्री पुरुष के पीछे नही जाती| हमेशा आदमी ही जाता है क्योकि इसमे काम वासना आक्रमक है, जीने नही देती इसे| ये लोभ, ये काम, हमारा दोष है जिसे हम मढ देते है हमेशा दूसरे के सिर पर |

गुरु जी कहते थे एक कहानी राजा भरथरी के जीवन के बारे में| राजा भरथरी ने पूरा भोगा जीवन को, खूब भोगा और भोग भोग कर जान गये इसके खालीपन को, खोखलेपन को| राजा भरथरी ने दो पुस्तक लिखी- पहले श्रृंगार शतक, जो भोगा उसके बारे में और जब अपने विशाल राज्य की तरफ पीठ की और संन्यास की तरफ मुंह तो पुस्तक लिखी वैराग्य शतक | एक सर्दी की सुबह हल्की हल्की गुनगुनी धुप में भरथरी जब शिला पर बैठे ध्यान में मगन थे, घोड़े की टाप सुनायी दी, धीरे से आँख खोली उन्होने, देखा सामने पगडंडी पर एक बड़ा दमकता हीरा पड़ा था | देखते ही लोभ आ गया भरथरी को| पर वे दूसरे क्षण ही संभले और हंसने लगे अपने आप पर कि मै भी कैसा पागल हूँ | जिस धन धान्य को ठोकर मार आया मै, आज उसी हीरे पर मेरी नीयत डोल गयी | इससे बड़े बड़े हीरे तो मै छोड़ आया अपने खजाने में | मै भी कैसा हूँ ? ग्लानि से भर गये भरथरी | अचानक दो घुड़सवार आये दोनों दिशा से, देख रहे थे हीरे को | जब दोनों घुड़सवारो की आँखे मिली आपस में तब हक जताने लगे दोनों अपना अपना कि इस हीरे पर पहले नजर मेरी पड़ी थी | दोनो की आँखों से चिंगारियां निकल रही थी | देखते देखते दोनो ने तलवार निकाल ली और कुछ समय बाद दोनो की तलवार एक दूसरे की छाती के आर पार हो गयी और खून का फव्वारा छूट गया था, दोनो का जीवन समाप्त हो गया था और हीरा वैसे का वैसा पड़ा था | उसे क्या, लोभ तो आदमी को आया था, इसमे हीरे का क्या दोष |

ये स्त्रियों के त्रिया चरित्र का बखान करने वाले पहले झांके अपने भीतर, अपने चरित्र को पहचाने फिर बताये कि किसका चरित्र कैसा है | ये जो स्वयं को दूध का धुला बतला रहे है, जरा `झांके अपने गिरेबान में | ये संन्यासी, जो मांग रहे है स्वर्ग, क्या ये भोग की मांग नहीं कर रहे? क्या इन्द्र के दरबार में हमेशा मेनका, रम्भा की उपस्थिति अनिवार्य नही है?  क्यो?  क्या ये कोई और करे तो हजार दोष न बतायेगे उसमे सब यहाँ भी मेरा-मेरा और तेरा-तेरा है, का सिद्धांत चलता है |

एक दिन मुल्ला नसीरूदीन और उसकी पत्नी चाय पर ही उलझ पड़े| मुल्ला बोला, पता नही कौन सी मनहूस घड़ी थी जो तुम मिली मुझे | पत्नी बोली, इस शादी के लिए मै तुम्हारे पीछे नही थी, तुम मेरे पीछे थे| मेरे माँ बाप की मिन्नते करते थे, मुझे प्रेम पत्र लिखते थे बड़े बड़े, आज भी रखे है संदूक में संभाल के, बात करते हो | बड़ा सकपकाया मुल्ला और बोला हाँ ठीक कही तुमने, कभी कोई चूहेदानी चूहो के पास नही जाती, ये मुर्ख चूहे ही जाते है उसके पास और सच ये भी है फंसते खुद है और गाली चूहेदानी को देते है | याद रहे कभी भी कोई स्त्री किसी पुरुष के पीछे नही जाती, पुरुष की कामना ही हिलोरे मारती है हमेशा और इसीलिए हमेशा अपने दोष को स्त्री के सिर मढ़ता है उसे त्रिया चरित्र बता के |

एक कहानी सुनाते थे गुरु जी| एक बार एक गाँव में रासलीला हुई, छप्पर के उपर एक मशीन लगायी गयी थी, जो बिजली से चलती थी| इस मशीन मे बहुत सी साड़ियाँ डाली गई थी जो एक बटन दबाने के साथ आती थी एक एक करके | दुशासन-द्रोपदी संवाद चल रहा था | जब दृश्य ये आया कि दुशासन, द्रोपदी का चीर हरण कर रहा था | अचानक बती चली गई| वैसे तो रोशनी का प्रबन्ध था लेकिन मशीन बिजली से चलती थी, जिसका कन्ट्रोल भी कृष्ण के हाथ में था| ये तो मुसीबत हो गयी, नया झमेला हो गया | दुशासन ने चीरहरण शुरू किया लेकिन साड़ियाँ कैसे आये| बड़ी अजीब स्थिति उत्पन्न हो गयी| दुशासन नही माना| उधर द्रोपदी जो बना था, वो भी गाँव का पहलवान था| उन दोनो में लड़ाई थी| वो बोला अरे दुष्ट, रुक जा, देख बत्ती चली गयी है, रोशनिया चालू है रुक जा लेकिन दुशासन बोला आज न छोडूंगा, सिद्ध करूँगा आज कि तू रांड नही, रंडवा है और चीरहरण चलता रहा | श्री कृष्ण ने मना किया तो भी नही माने और मानते भी क्यो? क्या श्री कृष्ण ने कसर छोडी थी वस्त्र लेकर गोपियों के चढ़ जाते थे पेड़ पर, बेचारी गोपियां का क्या दोष ? उनकी तो हालत ख़राब की श्री कृष्ण कन्हैया ने लेकिन भगवान थे वे, सब चलता है| इसी प्रकार द्रोपदी के पांच पति थे लेकिन सब चलता है क्योकि श्री कृष्ण की बहन थी | इतना अन्याय हुआ है आज तक स्त्री पर लेकिन आज भी त्रिया चरित्र स्त्री का ही होता है| क्यों सदा स्त्री ही सती होती है, पुरुष क्यों नही? स्त्री सरल है, सदा सिर माथे पर रखती है पुरुष को| याद रखे हम, जिस समाज में स्त्री का सम्मान नही, वो समाज मुर्दा समाज है, उसमे जागरण के कोई चिन्ह नही | ये समाज पंगु समाज होगा, मूक बधिर होगा| आप गौर करे, क्या अपने हाथ की एक अंगुली भी हम डाल सकते है आग में, नही| ये आसान नही, आप कोशिश भी करे तो भी हाथ अपने आप बाहर आ जायेगा एक झटके के साथ| अगर यदि सोते सोते हमारे पैर पर कोई चीटा चढ़ जाये तो हम बगैर जागे स्वयं ही हटा देते है उसे| हमारे शरीर के अन्दर एक एक कोशिका का प्राण तन्त्र है उसकी एक इंटेलीजेंसी है| कितना कठिन है अपने आपको आग के हवाले करना और वो भी उस पुरुष के लिए, जिसका स्वार्थ हमेशा सिर चढ कर बोलता है | समर्पण तो थोडा बहुत कही कही, जो अपना जीवन भी समर्पित कर देती है उसके लिए|  क्या युधिष्ठिर धर्मराज नही थे ? तो क्यो उन्होंने लगाया द्रोपदी को जुए में? क्या वो कोई वस्तु थी? ये कैसे धर्मराज है लेकिन है, तो है| ये पुरुष प्रधान समाज है, हमेशा कन्यादान होता है क्या कन्या कोई वस्तु है जिसे हम दान करें| जरुर झांके हम स्वयं में किसका चरित्र कैसा है, हमे जवाब मिल जायेगा |

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